जातिनिहाय आरक्षण - जाति के जरूरत मंदोंके लिये
भारित सूचीकरण प्रणाली
व्दारा -डॉ. विकास महात्मे, सांसद, राज्य सभा, पद्मश्री पुरस्कृत नेत्रतज्ञ
भारत देश में आरक्षण के इतिहास को देखा जाये तो समझ में आता है की अंग्रेजों ने भी कुछ समुदाय को आरक्षण दिया था। महाराष्ट्र के शाहू महाराज ने भी आरक्षण का पुरस्कार किया था। लेकिन आरक्षण को संवैधानिक या घटनात्मक दर्जा देकर, उसे सही दिशा देने का (Channelize करने का) महान कार्य अगर किसी ने किया तो वो परमपूज्य बाबासाहेब आम्बेडकरजी ने किया। उन्होंने ‘अन्त्योदय’ की एक ऎसी नींव रखी जो अपने आप में ही एक मिसाल बन गयी। और चल पड़ा भारत ‘परिवर्तन’ की ओर! परमपूज्य बाबासाहेब आम्बेडकरजी ने जो किया उसके कारण लोगों में सामाजिक न्याय के बारे में जनजागृती हुई इसमें कोई संदेह नहीं है। हालाँकि उन्होंने आरक्षण कुछ सालो तक ही सीमित रखा था – शायद इस अपेक्षा से की इन सालों में हम पूरा बदलाव कर पायेंगे; उँच- नीच की दीवार को हटा पायेंगे। लेकिन दुर्भाग्य वश ऐसा नहीं हो सका। आज लगभग ७० सालों बाद भी सामाजिक न्याय के लिये आरक्षण का होना जरूरी है। ऐसा क्यों हुआ होगा? इसपर सोच जरूरी है। चर्चा जरूरी है।
सबसे प्रथम मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ की न तो मैं आरक्षण नीती के विरोध में हूँ, ना मै सरकार एवं संविधान द्वारा दिये गये आरक्षण कोटे में कोई बदलाव चाहता हूँ। समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचना – ‘अन्त्योदय’ यह अगर हमारा लक्ष्य है तो विद्यमान आरक्षण नीती के बारे में कुछ तथ्यों पर विचार करना होगा। आरक्षण के मुद्दों को लेकर मोर्चे तथा बढ़ते आन्दोलन की वर्तमान प्रवृती को देखते हुए आरक्षण नीती में सुधार लाना अधिक सार्थक और जरूरी बनता है। आरक्षण का मूल उद्देश्य जाती में सबसे पिछड़े व्यक्ति को अवसर और लाभ देना है।
अकसर ऐसा देखा गया है की जिस जाति या जनजाति को आरक्षण लागू होता है, उस जाति / जनजाति के केवल १० प्रतिशत चुनिन्दा लोगों तक इसका लाभ पहुँचता है। वही १० प्रतिशत उच्च शिक्षित परिवार के लोग हर बार आरक्षण का लाभ लेकर समृद्ध बन जाते है और आगे बढ़ जाते है। अंत में उसी जाति / जनजाति के ९० प्रतिशत लोग जिन्हें वास्तव में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए वे आरक्षण से वंचित रह जाते है। इसका नतीजा यह होता है की उस जाति या जनजाति की प्रगति नहीं होती बल्कि सिर्फ कुछ चुनिन्दा परिवार समृद्ध होकर प्रगति पथ पर आगे बढ़ जाते है। आरक्षण का उद्देश्य अगर कोई समाज / जाति / जनजाति को मुख्य धारा में लाना है तो हमें किसी भी जाति / जनजाति के आरक्षण के हिस्से को छुए बिना आरक्षण नीती में कुछ बदलाव करना होगा।
मेरा अपना अनुभव इस आवश्यकता पर बेहतर तरीके से प्रकाश डाल सकता है। महाराष्ट्र में 'मातंग जाति' से संबंधित कुछ लोग मुझसे मिलने आए I वे अपने जाति के लोगों की स्थिति पर चिंतित थे। मैं हैरान था - "आप को पहले से ही अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण के फायदे मिल रहे हैं, फिर भी आप को शिकायत हैं?"- मैंने पूछा। उन्होंने कहा - "हम अनुसूचित जाति की सूची में ज़रूर हैं लेकिन अनुसूचित जाति वर्ग में जो शिक्षित एवं आर्थिक रूप से मजबूत जातियाँ हैं उनके साथ प्रतिस्पर्धा करने में हम सक्षम नहीं हैं। यहीं कारण हैं की हम SC तो हैं लेकिन SC आरक्षण के फ़ायदे हम तक नहीं पहुँच पाते। इसीलिए हम उप-वर्गीकरण चाहते हैं।"
एक और प्रसंग में, मैं एक मंत्री जी के यहाँ गया था जो एक पिछड़े वर्ग से थे। उनके पुत्र भी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से विधायक थे। उनकी नौकरानी – वह भी उन्हीं की जाति की थी - अगले 2 दिनों के लिए काम करने के लिए असमर्थता व्यक्त कर रहीं थी। मंत्री जी ने तुरंत कहा- "ठीक है फिर कल साफ़ सफ़ाई करने के लिए अपनी बेटी को भेज देना"। इसका मतलब है की, मंत्री / विधायक के पुत्र विधायक होंगे; डॉक्टर का बेटा एक डॉक्टर होगा और नौकरानी की बेटी एक नौकरानी होगी ... हालांकि सारे एक ही आरक्षण के तहत आते हैं। और यह दुष्चक्र पीढ़ियों तक चलेगा । एक नौकरानी का बेटा विधायक क्यों नहीं बन सकता है? यहीं हमारे मौजूदा आरक्षण प्रणाली की शोकान्तिका है।
एक और उदाहरण मैं देना चाहूँगा। अनुसूचित जनजाति श्रेणी में मीना जैसे कुछ जनजातियों को उच्च शिक्षित, समृद्ध तथा आर्थिक रूप से सक्षम समुदाय माना जाता है। कृपया मुझे गलत न समझें। एक बात मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ की मीना जनजाति के विरोध में नहीं हु। वास्तव में मैं उनके जनजाति को मौजूदा स्थिति में लाने के लिए उनके द्वारा किए गए प्रयासों की प्रशंसा करता हूं। लेकिन यह वास्तविकता है कि अनुसूचित जनजाति में अन्य जनजातियों के लिए मीना जनजाति के साथ प्रतिस्पर्धा करना और आरक्षण का लाभ उठाना मुश्किल है।
हमारी चुनौतिया
कुछ जाति ऐसी है जो आरक्षण श्रेणी में है लेकिन फिर भी आरक्षण पाने में असमर्थ रह जाती है। उदाहरण के तौर पर OBC में सपेरे, नंदिबैल लेकर चलने वाले, डोंबारी, कोल्हाटी, बहुरूपिये, गारुडी जैसी जातियाँ आरक्षण में समाविष्ट तो है लेकिन उन तक आरक्षण का लाभ नहीं पहुँच पाता। अगर हम अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) की बात करते है तो कुछ जातियाँ – जैसे भेड़ पालने वाले धनगर (Shepherd) या बंजारा समाज के घुमंतू – इन लोगों तक आज भी आरक्षण का लाभ नहीं पहुंचा है। OBC प्रवर्ग में १,००० से अधिक जातियाँ है। इसलिए इसमें जो प्रगत जातियाँ है वही आरक्षण का लाभ उठा रही है।
उस प्रगत जाति में भी जिन्हें आरक्षण मिल रहा है, उनमें भी जो अधिक पढ़े लिखे लोग है, जो अब तक प्रगत एवं समृद्ध हो चुके है वही निरंतर बार बार आरक्षण का लाभ उठा रहे है।
गौर से देखा जाये तो SC, ST (अनुसूचित जाति - जनजाति) का आरक्षण और OBC का आरक्षण इसमें एक मूलभूत फर्क है. SC / ST आरक्षण पूरी तरह जाति / जनजाति (Caste / Tribe) पर आधारित है। OBC याने Other Backward Class है; Other Backward Caste नही याने अन्य पिछड़ा वर्ग है; अन्य पिछड़ी जाति नहीं। और मंडल आयोग ने भी सामाजिक, शैक्षणिक, और आर्थिक निकष पर अन्य पिछडा वर्ग की सूची बनाई है। जन्म के आधार पर एक व्यक्ति विशिष्ट आरक्षण श्रेणी के अंतर्गत आता है और आरक्षण लाभ प्रणाली में प्रवेश करता है। वह व्यक्ति तथा उसका परिवार प्रगत होने पर भी आरक्षण के लाभ का आनंद लेते रहते है और समृद्धि की ओर चले जाते है। जब की उसी जाति के अन्य लोग जो अति पिछड़े है और आरक्षण के दावेदार है उन तक आरक्षण का लाभ नहीं पहुँच पाता।
मौजूदा आरक्षण प्रणाली में, हम एक बुनियादी धारणा देखते हैं। अनुसूचित जाति वर्ग के अंतर्गत आने वाली सभी जातियों को समान रूप से पिछड़ा माना जाता है और इसी तरह ST श्रेणी में आने वाले सभी जनजातियों के साथ तथा OBC (जिसके अंतर्गत1,000 से अधिक जातियाँ शामिल हैं ) के साथ भी होता हैं। हम सभी बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि यह वास्तविकता नहीं है। एक जाति या जनजाति के सभी लोग समान रूप से पिछड़े नहीं हो सकते हैं। यह एक अन्याय है की हम असमान को समान मानकर उन्हें अवसर प्रदान करते हैं - जो मेरी राय में एक बड़ी गलती है।
भारित सूचीकरण (Weighted Indexing)
मैंने भारित सूचीकरण (Weighted Indexing) के सिद्धांत का उपयोग कर यह सुझाव बनाये है। सुनने में थोडा जटिल है लेकिन आधार कार्ड एवं अन्य तकनीक के माध्यम से इसे बेहतर तरीके से निष्पादित कर सकते है। साथ ही पारदर्शिता के लिए सॉफ्टवेअर विकसित किया जा सकता है। यह प्रणाली मार्क्स या गुणांक पर आधारित है। इसमें मुददोंपर प्लस (अधिक) एवं मायनस (ऋणात्मक) अंक दिए जायेंगे। गुणों को ध्यान में लेते हुए जिनका स्कोर सबसे कम होगा (कभी तो यह स्कोर मायनस भी हो सकता है) उन्हें आरक्षण में सर्वाधिक प्राधान्य मिलेगा। कम पॉइंट मिलने वालो को ही आरक्षण श्रेणी में प्राधान्य है – यह सन्देश लोगों तक जाना आवश्यक है। कम गुण / अंक होने के मायने है - अधिक पिछड़ा होना; और अधिक पिछड़े जो है उन्हें ही आरक्षण का लाभ मिलने की जरूरत है और उन्हें ही अधिक सक्षम बनाने की कोशिश हमें करनी है ताकि उंच – नीच के बीच की दीवार हम हटा सके। पिछड़ापन यह गर्व की बात नहीं है। ‘पिछड़ापन’ सच मानिये तो प्रणाली की नाकामयाबी है, जो ७० सालो में हम नहीं मिटा सके।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि ओबीसी में शामिल सभी जातियों को पॉइंट सिस्टम / भारित सूचीकरण के आधार पर उप-वर्गीकृत किया जाएगा। सूचीबद्ध जाति / जनजाति में कोई बदलाव नहीं होगा और उनके मौजूदा कोटा और आरक्षण का प्रतिशत पहले जैसा ही रहेगा।
मानदंड निम्नअनुसार हो सकते है।
- शिक्षा
- प्राथमिक शिक्षा म्युनिसिपल / जिला परिषद् स्कूल में यदि ३ साल की होती है तो मायनस गुण दिये जायेंगे।
ब) माध्यमिक शिक्षा म्युनिसिपल / जिला परिषद् स्कूल में यदि ३ साल की होती है तो मायनस गुण दिये जायेंगे।
क) महाविद्यालयीन शिक्षा ग्रामीण इलांके में ३ साल तक होती है तो तब मायनस पॉइंट दिए जायेंगे ।
- आरक्षण का लाभ उठाया जाता है तो हर बार प्लस पॉइंट जोड़े जायेंगे और हर साल नया स्कोर बनेगा।
- महिलाओं को केवल एक बार विशेष रूप से मायनस पॉइंट दिए जायेंगे। ताकि उन्हें प्राथमिकता मिले।
- ऐसे बच्चे जिन्हें माता या पिता में से एक ही पालक है (एक पालक की मृत्यु होने से)। उन्हें प्राधान्य देने हेतु कुछ मायनस पॉइंट दिए जायेंगे।
- इस स्कोरिंग सिस्टिम की गणना में माता पिता की शिक्षा की पृष्ठभूमि को महत्त्व दिया जाना चाहिए। इसमें चार स्तर हो सकते है। अन्तर्निहित (lliterate); मॅट्रिक से निचे; मँट्रिक पास लेकिन स्नातक (ग्रैजुएट) नहीं, स्नातक या उपर। यह भी केवल एक बार ध्यान में लिया जायेगा। माता पिता की जितना शिक्षा कम उतने मायनस अंक जादा दिए जायेंगे।
- माता पिता ने स्वयं अगर आरक्षण का लाभ पहिले से उठाया हो तो ऎसे व्यक्ति की सम्भावना को कम करने के लिए उसके स्कोर में प्लस अंक मिलाये जायेंगे।
- माता- पिता में से कोई भी आरक्षण का लाभ लेते हुए अगर एक साल या अधिक के लिए सरकारी नोकरी में रहे है, या जनप्रतिनिधि रहे है (जैसे की पार्षद, विधायक, सांसद इत्यादि) तो उस व्यक्ति को प्लस अंक दिये जायेंगे ताकि उसकी सम्भावना कम हो।
- परिवार का व्यवसाय; अगर भटकना या घुमन्तू है मायनस अंक देकर प्राधान्य दिया जायेगा। घुमन्तू की परिभाषा को ठीक से जानना होगा। जैसे एक अफसर अगर ६ या ७ साल तक घर से बाहर है तो उसे घुमन्तू नहीं कहा जा सकता। यह भी केवल पहली बार लागू किया जायेगा।
- परिवार की आय अगर कम हो तो मायनस अंक देकर सम्भावना बढ़ाना होगा। जैसे वार्षिक आय ६ लाख से कम हो तो कुछ अंक; जितनी आय कम उतने मायनस अंक जादा ताकि प्राथमिकता मिलने की सम्भावना ज्यादा।
- आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र में अगर कोई व्यक्ति आरक्षण का लाभ लेते हुए निर्वाचित होता है तो उसी पद के लिए चुनाव के लिए दोबारा वह आरक्षण का लाभ नहीं ले पायेगा; हालाँकि निर्वाचन क्षेत्र उसी श्रेणी में आरक्षित रहेगा लेकिन किसी दूसरे व्यक्ति को उभरने का मौका मिलेगा। इस तरह से कोई एक व्यक्ति बार बार नेता बनकर अपना एकाधिकार आरक्षण के बल पर नहीं जमा पायेगा। सिर्फ एक व्यक्ति की जगह पर कई के लिए अवसर प्रदान करने में हम सफल होंगे। इससे पहिले व्यक्ति पर कोई अन्याय नहीं होगा क्योंकि वो अब भी आरक्षण का लाभ लिए बिना ओपन कॅटेगरी में चुनाव लढ़ सकता है। इस तरीके से हम आरक्षण के प्रतिशत को कम न करते हुए उसी आरक्षित वर्ग के अधिकतम लोगों को अधिक सक्षम बनायेंगे। यह सर्टिफिकेट चुनाव के छह माह पहिले दिया जायेगा।
- आरक्षित श्रेणी के लिए सरकारी नौकरी केवल ५ वर्ष के लिए प्रदान की जायेगी। ५ साल के सक्षमीकरण के बाद उस व्यक्ति को नये अवसर ढूँढना होगा। इस प्रक्रिया में हम आरक्षण के प्रतिशत को कही भी कम नहीं कर रहे है। यह उम्मीदवार ५ साल के बाद सरकारी नौकरी से निकलेगा तो उसकी जगह उसी आरक्षण श्रेणी का दूसरा उम्मीदवार उसी सेवा में लिया जायेगा। इस तरह से उस आरक्षित श्रेणी के तहत आने वाले अधिक से अधिक लोगों को लाभ पहुंचा पाएंगे और ऊँच-नीच की दरी समाप्त करने में मदद होगी।
सांख्यिकिविदों के (Statisticians) या information Technology के सहायतासे इस स्कोरिंग सिस्टम के लिए एक सॉफ्टवेअर बनाकर यह प्रणाली लागू किया जा सकती है। इसे अगर हम आधार कार्ड से जोड़ते है तो यह और आसान होगा। सूचि का गुणांकन मायनस या प्लस में हो सकता है। या जैसे भी तय करेंगे उस तरह से होगा। जब पात्रता का मानदंड पूरा हो जायेगा, भारित सूचीकरण की मदद ली जायेगी। इस प्रणाली में Point System की वजह से (भारित सूचीकरण की वजह से) Certificate बार-बार बनाने पड़ सकते हैं। लेकिन आज भी Creamy Layer का प्रमाणपत्र हमें हर समय पेश करना पड़ता हैं। आज Computer software और आधार कार्ड की वजह से Weighted indexing (भारित सूचीकरण) आसानी से लागू कर सकते हैं।
बार-बार एक बात पर जोर देना बहुत आवश्यक है की यह प्रणाली कही भी आरक्षण का प्रतिशत (Percentage) कम नही करती। यह इसलिए क्योंकि आरक्षित वर्ग के मनमे ‘मेरा आरक्षण छीन लिया जायेगा’ यह डर हमेशा बना रहता है। सामान्य व्यक्ति किसी भी नये प्रणाली की ओर संदेह से देखता है। यह मनुष्य का स्वभाव है। यह स्कोरिंग प्रणाली से हम एक ही बात को आश्वासित करते है की किसी भी आरक्षित श्रेणी के अधिक से अधिक लोग आरक्षण लाभ की छत की नीचे आये न की सिर्फ चुनिंदा प्रगत लोग। इस तरह से कोई भी आरक्षित पद / सीट खाली नहीं रहें। यदि कम अंक प्राप्त करने वाला (अधिक पिछड़ा व्यक्ति) न्यूनतम योग्यता (Minimum Qualification / Eligibility Criteria) पूर्ण नहीं करता हो, तो उसी जगह पर ज्यादा अंक प्राप्त करने वाले उसी पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को लिया जा सकता है।
आज जो मौजुदा क्रीमी लेयर प्रणाली है उसमें अभी फ़िलहाल जो जादा आय वाले लोग है वो स्पर्धा में हिस्सा नहीं ले सकते। उदा. की तौर पर यदि कोई पद है जिसमें से एक OBC उम्मीदवार जिसकी आय २० लाख सालाना है तो वह OBC श्रेणी में आवेदनपत्र नहीं कर सकता। और यदि नॉन क्रीमी लेयर का OBC उम्मीदवार नहीं मिला तो वह पद खाली रहेगा या खुले श्रेणी (Open) से भरा जाएगा। लेकिन इस नई प्रणाली में वैसे नहीं होगा। यदि कम आय वाला उम्मीदवार नहीं मिल रहा है तो ज्यादा आय वाले उम्मीदवार को अवसर मिलेगा।
आशंका / कुछ प्रश्न :
कई लोग ऐसा सोचेंगे की भारित सूचीकरण प्रणाली में, हर बार व्यक्ति को अपने गुणांक के हिसाब से नया प्रमाणपत्र बनवाना होगा| यह सच है| लेकिन विद्यमान प्रणाली में भी क्रिमिलेअर प्रमाणपत्र हर बार नया बनता है| इसलिये मुझे ऐसा नहीं लगता की लाभार्थियों के लिये कोई अतिरिक्त बोझ होगा| जैसा की हम इसे आधार या अन्य तकनीक से जोड़ने का सोच रहे है, तो नये से गुणांक जोड़ना बहुत आसान बात होगी और नया प्रमाणपत्र बनाना भी मुश्किल नहीं होगा|
इसी प्रकार कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठेगा की क्या भारित सूचीकरण एवं OBC का उप वर्गीकरण एक समान है या नहीं? इसे समझने के लिये आइये एक उदाहरण देखते है| मान लीजिये की हमे १०,००० लोगों का वर्गीकरण करना है | उनका वर्गीकरण लिंग / शिक्षा / आय पर आधारित किया जा सकता है| इसके पश्चात इन वर्गों का उप वर्गीकरण – जैसे की इन वर्गों में उम्र के हिसाब से हम ० से ९ माह तक; ९ माह से २ साल तक; २ साल से ५ साल तक इस प्रकार से कर सकते है। उप वर्गीकरण करते समय हमें मूलतः दो शर्तों को पूरा करना चाहिये| सबसे पहले सभी लोगोंको उप वर्गीकरण के तहत समाविष्ट करना होगा| दूसरी बात यह की इसके परिभाषित मानदंड होने चाहिए जिसपर उप वर्गीकरण आधारित है| मेरी राय में, भारित सूचीकरण दोनों मानदंडों को पूरा करता है| तो यह OBC का उप वर्गीकरण ही है| इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यह आरक्षण नीति का मूल उद्देश्य रखता है; यानी आरक्षण के लाभ को जाति में सर्वाधिक पिछड़े व्यक्ति को पहुँचाना |
लाभ :-
- आरक्षण का मुख्य उद्दीष्ट यह है की जो अति पिछड़ा वर्ग है, उसे प्रगति का अवसर मिले ताकि वह मुख्य धारा में आये। इस weighted Indexing या भारित सूचीकरण के माध्यम से हम यह उद्दिष्ट पूरा कर सकते है। अति पिछड़ा वर्ग को प्राधान्य मिलने से अन्त्योदय का जो सपना है वह सच हो सकता है। आरक्षण अन्त्योदय से सर्वोदय के लिये।
- जातियों के बीच घृणा कम हो जाएगी। जातियवाद (Casteism) कम होगा। उपर निर्देशित अन्य चुनौतियों का भी ध्यान में रखा जायेगा।
- पिछड़े वर्ग की अलग वर्गीकरण की मांग ख़त्म होगी। क्यों की वर्गीकरण करने से भी उस जाति के प्रगत लोग ही फिर से लाभ उठाते है यह परेशानी हमेशा के लिये दूर होगी।
।। जाति निहाय आरक्षण – जाति के जरूरत मंदो के लिए ।।भारित सूचीकरण प्रणाली(Weighted Indexing System) के माध्यम सेआरक्षण अन्त्योदय से सर्वोदय के लिये।डॉ. विकास महात्मेसांसद, राज्य सभापद्मश्री पुरस्कृत नेत्रतज्ञ:: संपर्क ::16, सेंट्रल एक्साइज कॉलोनी, रिंग रोड, छत्रपती चौक, नागपुर - 440 015. (महाराष्ट्र)मो.: 9975590908, 9371272556, 8888277722फोन : 0712 - 2222553, 2222556ईमेल - mp.mahatme@sansad.nic.in , mpofficemahatme@gmail.com
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